Inspirational Hindi Kavita – हिंदी कविता का एक दौर आया और बड़े बड़े हिंदी कवियों ने अपने वाणी से हम सबको भावविभोर कर दिया | कविता का एक वह दौर था और एक आज का दौर है जिसमे हम कुमार विश्वास जैसे ज्ञानी और सामर्थ्यवान इंसान की वाणी सुनकर मनमोहित हो उठे है | हिंदी कविता में बात ही कुछ ऐसे है की हमारे पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने वाणी से सदन में सबको अपनी तरफ अखरषित कर लिया था | आज ऐसे ही कुछ महान साक्ष के हम कविता पढ़ेंगे जो आपको हिंदी कविता से रूबरू कराएगा |

अटल बिहारी वाजपेयी के काव्यसंग्रह

अटलजी के फेमस और मज़ेदार कविता की कुछ सूचि आपको पेश करते है |

Hindi Kavita on Life – जम्मू की पुकार

अत्याचारी ने आज पुनः ललकारा, अन्यायी का चलता है, दमन-दुधारा।
आँखों के आगे सत्य मिटा जाता है, भारतमाता का शीश कटा जाता है॥

क्या पुनः देश टुकड़ों में बँट जाएगा? क्या सबका शोणित पानी बन जाएगा?
कब तक दानव की माया चलने देंगे? कब तक भस्मासुर को हम छलने देंगे?

कब तक जम्मू को यों ही जलने देंगे? कब तक जुल्मों की मदिरा ढलने देंगे?
चुपचाप सहेंगे कब तक लाठी गोली? कब तक खेलेंगे दुश्मन खूं से होली?

प्रहलाद परीक्षा की बेला अब आई, होलिका बनी देखो अब्दुल्लाशाही।
माँ-बहनों का अपमान सहेंगे कब तक? भोले पांडव चुपचाप रहेंगे कब तक?

आखिर सहने की भी सीमा होती है, सागर के उर में भी ज्वाला सोती है।
मलयानिल कभी बवंडर बन ही जाता, भोले शिव का तीसरा नेत्र खुल जाता॥

जिनको जन-धन से मोह प्राण से ममता, वे दूर रहें अब ‘पान्चजन्य’ है बजता।
जो विमुख युद्ध से, हठी क्रूर, कादर है, रणभेरी सुन कम्पित जिन के अंतर हैं ।

वे दूर रहे, चूड़ियाँ पहन घर बैठें, बहनें थूकें, माताएं कान उमेठें
जो मानसिंह के वंशज सम्मुख आयें, फिर एक बार घर में ही आग लगाएं।

पर अन्यायी की लंका अब न रहेगी, आने वाली संतानें यूँ न कहेगी।
पुत्रो के रहते का जननि का माथा, चुप रहे देखते अन्यायों की गाथा।

अब शोणित से इतिहास नया लिखना है, बलि-पथ पर निर्भय पाँव आज रखना है।
आओ खण्डित भारत के वासी आओ, काश्मीर बुलाता, त्याग उदासी आओ॥

शंकर का मठ, कल्हण का काव्य जगाता, जम्मू का कण-कण त्राहि-त्राहि चिल्लाता।
लो सुनो, शहीदों की पुकार आती है, अत्याचारी की सत्ता थर्राती है॥

उजड़े सुहाग की लाली तुम्हें बुलाती, अधजली चिता मतवाली तुम्हें जगाती।
अस्थियाँ शहीदों की देतीं आमन्त्रण, बलिवेदी पर कर दो सर्वस्व समर्पण॥

कारागारों की दीवारों का न्योता, कैसी दुर्बलता अब कैसा समझोता ?
हाथों में लेकर प्राण चलो मतवालों, सिने में लेकर आग चलो प्रनवालो।

जो कदम बाधा अब पीछे नहीं हटेगा, बच्चा – बच्चा हँस – हँस कर मरे मिटेगा ।
वर्षो के बाद आज बलि का दिन आया, अन्याय – न्याय का चिर – संघर्षण आया ।

फिर एक बात भारत की किस्मत जागी, जनता जागी, अपमानित अस्मत जागी।
देखो स्वदेश की कीर्ति न कम हो जाये, कण – कण पर फिर बलि की छाया छा जाए।

सत्ता

मासूम बच्चों,
बूढ़ी औरतों,
जवान मर्दों की लाशों के ढेर पर चढ़कर
जो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना चाहते हैं
उनसे मेरा एक सवाल है :
क्या मरने वालों के साथ
उनका कोई रिश्ता न था?
न सही धर्म का नाता,
क्या धरती का भी संबंध नहीं था?
पृथिवी मां और हम उसके पुत्र हैं।
अथर्ववेद का यह मंत्र
क्या सिर्फ जपने के लिए है,
जीने के लिए नहीं?

आग में जले बच्चे,
वासना की शिकार औरतें,
राख में बदले घर
न सभ्यता का प्रमाण पत्र हैं,
न देश-भक्ति का तमगा,
वे यदि घोषणा-पत्र हैं तो पशुता का,
प्रमाश हैं तो पतितावस्था का,
ऐसे कपूतों से
मां का निपूती रहना ही अच्छा था,
निर्दोष रक्त से सनी राजगद्दी,
श्मशान की धूल से गिरी है,
सत्ता की अनियंत्रित भूख
रक्त-पिपासा से भी बुरी है।
पांच हजार साल की संस्कृति :
गर्व करें या रोएं?
स्वार्थ की दौड़ में
कहीं आजादी फिर से न खोएं।

पुनः चमकेगा दिनकर

आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर।

Hindi Kavita on Nature – गुलज़ार

त्रिवेणी बह निकली

शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी – त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है – सरस्वती
जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है
तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।
१९७२/७३ में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं
और अब त्रिवेणी को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए

बोस्की के लिए

कुछ ख़्वाबों के ख़त इन में , कुछ चाँद के आईने ,
सूरज की शुआएँ हैं
नज़मों के लिफाफ़ों में कुछ मेरे तजुर्बे हैं,
कुछ मेरी दुआएँ हैं
निकलोगे सफ़र पर जब यह साथ में रख लेना,
शायद कहीं काम आएँ

त्रिवेणी-1

उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलती रही वह शाख़ फ़िज़ा में

अलविदा कहने को ? या पास बुलाने के लिए ?

त्रिवेणी-2

क्या पता कब कहाँ मारेगी ?
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ

मौत का क्या है, एक बार मारेगी

त्रिवेणी-3

सब पे आती है सब की बारी से
मौत मुंसिफ़ है कम-ओ-बेश नहीं

ज़िंदगी सब पे क्यों नहीं आती ?

त्रिवेणी-4

कौन खायेगा ? किसका हिस्सा है
दाने-दाने पे नाम लिख्खा है

सेठ सूद चंद, मूल चंद जेठा

त्रिवेणी-5

भीगा-भीगा सा क्यों है अख़बार
अपने हॉकर को कल से चेंज करो

“पांच सौ गाँव बह गए इस साल”

त्रिवेणी-6

चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा

राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी

त्रिवेणी-7

गोले, बारूद, आग, बम, नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है

बंध खोलो कि आज सब “बंद” है

त्रिवेणी-8

रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था-
चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर

सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना

Inspirational Hindi Kavita

कुमार विश्वास

मै तुम्हे ढूंढने

मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

तुम चली गई तो मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही मैं मानता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा

बादड़ियो गगरिया भर दे

बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

अंबर से अमृत बरसे
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

सबकी अरदास पता है
रब को सब खास पता है
जो पानी में घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे

इतनी रंग बिरंगी दुनिया

इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।
ऐसे उजले लोग मिले जो, अंदर से बेहद काले थे,
ऐसे चतुर मिले जो मन से सहज सरल भोले-भाले थे।

ऐसे धनी मिले जो, कंगालो से भी ज्यादा रीते थे,
ऐसे मिले फकीर, जो, सोने के घट में पानी पीते थे।
मिले परायेपन से अपने, अपनेपन से मिले पराये,
हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये।
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये।

जिनको जगत-विजेता समझा, मन के द्वारे हारे निकले,
जो हारे-हारे लगते थे, अंदर से ध्रुव- तारे निकले।
जिनको पतवारे सौंपी थी, वे भँवरो के सूदखोर थे,
जिनको भँवर समझ डरता था, आखिर वही किनारे निकले।
वो मंजिल तक क्या पहुंचे, जिनको रास्ता खुद भटकाए।

हमसे पूछो इतने अनुभव, एक कंठ से कैसे गाये,
इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आँखों में कैसे आये।

चन्द कलियां निशात की

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

बदलने को तो इन आंखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश में है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या

जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ़ का घराना है
बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे हमने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ

मैं जब भी तेज़ चलता हूँ नज़ारे छूट जाते हैं
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
मैं रोता हूँ तो आकर लोग कँधा थपथपाते हैं
मैं हँसता हूँ तो अक़्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।

हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे, असर तो हो
हकीकत में कहीं पर हो न हो आँखों में घर तो हो
तुम्हारे प्यार की बातें सुनाते हैं ज़माने को
तुम्हें खबरों में रखते हैं मगर तुमको खबर तो हो

बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।

हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से जमाना है

मेरा प्रतिमान आंसू मे भिगो कर गढ़ लिया होता,
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया होता,
मेरी आँखों मे भी अंकित समर्पण की रिचाएँ थीं,
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ

हमें दो पल सुरूरे-इश्क़ में मदहोश रहने दो
ज़ेहन की सीढियाँ उतरो, अमां ये जोश रहने दो
तुम्ही कहते थे “ये मसले, नज़र सुलझी तो सुलझेंगे”,
नज़र की बात है तो फिर ये लब खामोश रहने दो

मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है

अभी चलता हूँ, रस्ते को मैं मंजिल मान लूँ कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लूँ कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझ को घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूँ कैसे

भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!

कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है, साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा

जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा

कल्म को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा

इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा
कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा

हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा

ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिंदी माँ का जाया हूँ
ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूँ
मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बाँ वालों
मैं हिंदी माँ का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूँ

स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी
बहुत मशहुर हो तुम भी, बहुत मशहुर हैं हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हैं हम भी
अत: मजबूर हो तुम भी, अत: मजबूर हैं हम भी

हरेक टूटन, उदासी, ऊब आवारा ही होती है,
इसी आवारगी में प्यार की शुरुआत होती है,
मेरे हँसने को उसने भी गुनाहों में गिना जिसके,
हरेक आँसू को मैंने यूँ संभाला जैसे मोती है

कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन

हमें दिल में बसाकर अपने घर जाएं तो अच्छा हो
हमारी बात सुनलें और ठहर जाएं तो अच्छा हो
ये सारी शाम जाब नज़रों ही नज़रो में बिता दी है
तो कुछ पल और आँखों में गुज़र जाएँ तो अच्छा हो

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल लुट गया रोता घिस घिस री तातन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की हैं,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन

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